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यादों के झरोखे भाग २०

डायरी दिनांक ०३/१२/२०२२

 रात के आठ बजकर पचपन मिनट हो रहे हैं ।

  मनुष्य का मन शायद शरीर का सबसे दुर्बल भाग है जो कि अक्सर थोड़ी सी बातों से ही कमजोर हो जाता है। कई बार बड़ी बड़ी बातों से निष्प्रभावी रहता है और कई बार छोटी सी बातें ही इसे जख्मी कर देती हैं। एक नुकीले छोटे से चाकू का घाव भी तलवार के घाव से कम नहीं होता है।

  आज बहुत दिनों बाद दावत का लुत्फ उठाया। मैरिज होम शहर से थोड़ा दूर था तो घर वापस आते आते देर हो गयी। हालांकि बड़े शहरों में तो देर से ही दावत आरंभ होने का चलन है।

  मैरिज होम के दरवाजों पर दोनों तरफ पहरेदार की वेशभूषा में दो पुरुषों का भाले के साथ खड़ा होना, ऐसा तो बचपन से देखा है। आज जहां शादी में गया था, वहां दरवाजे पर दोनों तरफ फूलों की थाल लिये दो लड़कियां खड़ी थीं। मन में पता नहीं क्यों - दया के से भाव उठने लगे। पता नहीं कब तक वे दोनों लड़कियां वहीं दरवाजे पर खड़ी रहेंगीं। ऐसे काम को करने का कारण निश्चित ही एक बड़ी मजबूरी ही होगा।

   अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम ।

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1 Comments

Pratikhya Priyadarshini

04-Dec-2022 10:37 PM

बेहतरीन 👌🌸

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